करमनास जल सुरसरि परई, तेहि काे कहहु शीश नहिं धरई।
उलटा नाम जपत जग जाना, बालमीकि भये ब्रह्मसमाना।।
भावार्थ :
कर्मनास का जल (अशुद्ध से अशुद्ध जल भी) यदि गंगा जी के जल में पड़ जाए तो बताइए उसे कौन नहीं सिर पर रखता है? अर्थात अशुद्ध जल भी गंगा के समान पवित्र हो जाता है। सारे संसार मे प्रचलित है की राम का उल्टा नाम का जाप करके वाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गए।
यह चौपाई श्री रामचरित मानस से ली गई है । आज के समय में भी ये उतनी ही महत्वपूर्ण है । यह चौपाई हमे प्रेरित करती है की अच्छे और सज्जन लोगों की संगति मे रहना चाहिए अच्छे लोगों की संगति मे रहने से न चाहते हुए भी हम अछे कर्म करते है। व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का परिवार तो अच्छा होता ही है, साथ ही उसका प्रभाव समाज व राष्ट्र पर भी गहरा पड़ता है। जहां अच्छी संगति व्यक्ति को कुछ नया करते रहने की समय-समय पर प्रेरणा देती है, वहीं बुरी संगति से व्यक्ति गहरे अंधकूप में गिर जाता है। अच्छी संगति व्यक्ति का मन व मस्तिष्क निर्मल करती है।