अलोपशांकरी माता (शक्ति पीठ) प्रयागराज
माँ दुर्गा देवी के बहुत स्वरूप है, जिनके शक्ति पीठ के दर्शन और पूजा के लिए भक्तो की भारी भीड़ उमड़ती है| नवरात्रि मे तो हर मंदिर मे मेला लगा रहता है| देवी माँ हर मंदिर मे किसी न किसी रूप मे स्थित है , प्रत्येक मंदिर मे किसी न किसी एक अंग गिरने का निसानी मौजूद है | लेकिन संगम नगरी (प्रयाग राज) मे माँ सती का ऐसा शक्ति पीठ मौजूद है जहाँ न मां की मूर्ति है न ही उनका कोई अंग है इस मंदिर मे देवी माँ के लाल चुनरी मे लिपटे हुए पालने की पूजा की जाती हैं, और यह मंदिर अलोपशांकरी देवी माता की मंदिर के नाम से विख्यात है |
यह मंदिर प्रयागराज से दारागंज से रामबाग की तरफ जाने वाले रास्ते पर अलोपशांकरी माता जी का मंदिर है, इन्ही माता जी के नाम से इस मुहल्ले को अलोपी मुहल्ले के नाम से जाना जाता है| मंदिर की देख रेख करने वाले पुजारी का कहना है की इस मंदिर के बारे मे पुराणो मे भी दिया गया है या बताया गया है कि माँ सती के दाहिने हाथ का पंजा यहाँ पर गिरा था और गिरने के बाद विलुप्त हो गया था, जिसके कारण इस मंदिर का नाम अलोपशांकरी माता जी का मंदिर पड़ा | प्रयाग राज के निवासी लोग इसे अलोपी देवी के नाम से जानते हैं|
इस मंदिर मे गर्भ गृह के बिचो बीच एक चबूतरा बना हुआ है, जहाँ एक कुंड बना हुआ हैं और कुंड के ऊपर एक चौकोर के आकार का एक लकड़ी का पालना बना हुआ है जिसे हम झूला भी बोलते है यह एक रस्सी से बंधा हुआ है जो नीचे की तरफ लटक रहा है जो हमेशा लाल कपड़े की चुनरी से हमेशा ढाका रहता हैं लोगो का कहना है की मां के दाहिने हाथ का पंजा यही पर गिरा था, जँहा पर कुण्ड बना हुआ है| मंदिर के सेवक के अनुसार इस कुंड को चमत्कारी माना जाता है इसीलिए यहाँ पर जो भी भक्तजन आते है इस चमत्कारी कुंड के जल की और पालने की पूजा अर्चना करते है और कुंड के जल का आंच मन करते है|
इस मंदिर मे आने वाले भक्तजन किसी प्रतिमा की पूजा नही करते है इस मंदिर मे स्थित पालने की पूजा अर्चना करते है, भक्तजन कुंड का जल लेकर पालने पर चढ़ाते है और मंदिर की परिक्रमा करते हैं और माता सती का आशीर्वाद लेते हैं यहाँ पर केवल माता को नारियल या पुष्प ही चढ़ाते है, और हलवा पुरी का भोग माँ को चढ़ाने के बाद खाते है अपने परिवार वालो के संग | यहाँ पर दूर दूर से भक्तजन आते है और कड़ाही चढ़ाते है जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है हैं तो वो प्रसाद माँ को भोग लगाने के बाद सब उस भोग खाते है | यहाँ पर नवरात्रि मे मेले का आयोजन किया जाता हैं और बहुत भक्तजन यहाँ आते है माँ का दर्शन करते है और मिले का लुफ्त उठाते है | नवरात्री के समय इस मंदिर माता को सजाया तो नही जाता है पर उनके सभी रूपों का पाठ किया जाता हैं|
मंदिर मे सोमवार और शुक्रवार को यहाँ भारी जनसंख्या मर भक्तजन आते है माता के दर्शन के लिए और कतार मे खड़े होकर इंतजार करते है माता के दर्शन के लिए, यहाँ के मंदिर के आस पास मे बहुत सी दुकाने है जो माता को चढ़ाने के लिये लिया जाता है| जैसे चुनरी, नारियल, पुष्प, सिंदूर आदि चीजों की दुकान मिल जाती है मंदिर के पास ही और यहाँ पर अन्य चीजे भी मिल जाती है जैसे स्त्रियो के श्रृंगार के समान, बच्चो के खिलौने |
यह मंदिर प्रयाग स्टेशन से 4.8 km यह मंदिर पड़ता है और प्रयाग राज जंक्शन से 5.5 km पडता है | दोनो जगह से वाहन चलते रहते है जो मंदिर तक पहुँचने मे मदद करते हैं| यहाँ पर भक्तजन आकर अपनी मनोकामना पूर्ण हो जाने की पूजा करते हैं और अपनी मन्नत का कलावा भी बाँधते है| ये मां सती के शक्ति पिठो मे एक मंदिर है |
यहाँ पर आने वाले भक्तजन मन्नत का रक्षा सूत्र बांधते है और अपनी मन्नत पूरी करने के लिए देवी माता से विनती करते है | और यही रक्षा सूत्र का धागा अपने कलाई पर बधते है जिससे देवी माता की कृपा अपने भक्तजन पर सदा बनी रहे | यहाँ पर बहुत दूर दूर से भक्तजन आते हैं और माता का दर्शन करते है और अपने परिवार पर माता की कृपा बनी रहे ऐसा विनती करते है , और माता का जयकारा लगाते है | जय माता दी!
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ReplyDeleteGood information
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