आज हम आपको ले चलते है श्री लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन के लिए:
ये मंदिर संगम किनारे लाल किले से सटा हुया स्थित है। यह मंदिर धरती का एक मात्र मंदिर है जिसका विवरण पुराणों में विषद रूप से प्राप्त होता है। यही एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ हनुमान जी के लेटे हुए रूप का विवरण मिलता है। अब आजकल तो अनेक मंदिर बन गए हैं। जहाँ हनुमान जी को लेटा हुआ दर्शाया गया है। स्तु जो भी हो, पुराणों में एक ही लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर का विवरण प्राप्त होता है और वह प्रयाग क्षेत्र के संगम तट पर स्थित प्रयागराज के बड़े हनुमान जी का मंदिर ही है।
जो प्रचलित कथा इस लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर के विषय में प्राप्त होती है, वह यह है कि एक बार एक व्यापारी हनुमान जी की भव्य मूर्ति लेकर जलमार्ग से चला आ रहा था। वह हनुमान जी का परम भक्त था। जब वह अपनी नाव लिए प्रयाग के समीप पहुँचा तो उसकी नाव धीरे-धीरे भारी होने लगी तथा संगम के नजदीक पहुँच कर यमुना जी के जल में डूब गई। कालान्तर में कुछ समय बाद जब यमुना जी के जल की धारा ने कुछ राह बदली। तो वह मूर्ति दिखाई पड़ी। उस समय मुसलमान शासक अकबर का शासन चल रहा था। उसने हिन्दुओं का दिल जीतने तथा अन्दर से इस इच्छा से कि यदि वास्तव में हनुमान जी इतने प्रभावशाली हैं तो वह मेरी रक्षा करेगें।
यह सोचकर उनकी स्थापना अपने किले के समीप ही करवा दी। किन्तु यह निराधार ही लगता है। क्योंकि पुराणों की रचना वेदव्यास ने की थी। जिनका काल द्वापर युग में आता है। इसके विपरीत अकबर का शासन चौदहवीं शताब्दी में आता है। अकबर के शासन के बहुत पहले पुराणों की रचना हो चुकी थी। अतः यह कथा अवश्य ही कपोल कल्पित, मनगढन्त या एक समुदाय विशेष के तुष्टिकरण का मायावी जाल ही हो सकता है।
जो सबसे ज्यादा तार्किक, प्रामाणिक एवं प्रासंगिक कथा इसके विषय में जनश्रुतियों के आधार पर प्राप्त होती है, वह यह है कि रामावतार में अर्थात त्रेतायुग में जब हनुमानजी अपने गुरु सूर्यदेव से अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करके विदा होते समय गुरुदक्षिणा की बात चली। भगवान सूर्य ने हनुमान जी से कहा कि जब समय आएगा तो वे दक्षिणा माँग लेंगे। हनुमान जी मान गए। किन्तु फिर भी तत्काल में हनुमान जी के बहुत जोर देने पर भगवान सूर्य ने कहा कि मेरे वंश में अवतरित अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम अपने भाई लक्ष्मण एवं पत्नी सीता के साथ प्रारब्ध के भोग के कारण वनवास को प्राप्त हुए हैं। वन में उन्हें कोई कठिनाई न हो या कोई राक्षस उनको कष्ट न पहुँचाएँ इसका ध्यान रखना। सूर्यदेव की बात सुनकर हनुमान जी अयोध्या की तरफ प्रस्थान हो गए। भगवान सोचे कि यदि हनुमान ही सब राक्षसों का संहार कर डालेंगे तो मेरे अवतार का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा। अतः उन्होंने माया को प्रेरित किया कि हनुमान को घोर निद्रा में डाल दो। भगवान का आदेश प्राप्त कर माया उधर चली जिस तरफ से हनुमान जी आ रहे थे। इधर हनुमान जी जब चलते हुए गंगा के तट पर पहुँचे तब तक भगवान सूर्य अस्त हो गए। हनुमान जी ने माता गंगा को प्रणाम किया। तथा रात में नदी नहीं लाँघते, यह सोचकर गंगा के तट पर ही रात व्यतीत करने का निर्णय लिया।
हनुमान जी के हृदय में अपने गुरु की आज्ञा पालन का संदेश घुमड़ रहा था। अतः उन्हें नींद भी नहीं आ रही थी। अतः वह आसन लगाकर ध्यानस्थ हो विचार मग्न हो गए। इधर माया ने जब उन्हें ध्यानस्थ देखा तो वह डर गई। क्योंकि यदि प्रातः काल हो गया तो हनुमान जी अयोध्या पहुँच जाएँगे तथा प्रण के दृढनिश्चयी
हनुमान जी अपना कार्य प्रारम्भ कर देंगे। अचानक हनुमान जी का ध्यान टूटा।
उन्होंने सोचा क्यों न रात सत्संग में बिताई जाए। यह सोच कर वह ऋषि भारद्वाज के आश्रम की तरफ चल पड़े। अब माया और भी निराश हो गई। हनुमान जी भारद्वाज ऋषि के आश्रम पहुँचे। वहाँ वेद पुराण का व्याख्यान चल रहा था। हनुमान जी वहीं बैठकर कथा सुनने लगे। कथा में भारद्वाज ऋषि ने बताया कि कल यहाँ पर जगत के स्वामी तथा अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र के रूप में अवतरित भगवान राम गंगा को पार कर पहुँचने वाले हैं। हनुमान जी प्रसन्न हो गए।
अभी उन्होंने गंगा पार कर अयोध्या जाने का विचार त्याग दिया। तथा वहीं संगम के तट पर ही रह कर भगवान राम की प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया। रात्रिकालीन आवश्यक कार्यों को पूरा कर हनुमान जी वहीं संगम के तट पर लेट गए। और उन्हें नींद आ गई। इधर माया को अवसर मिला। और उसने हनुमान जी को धर दबोचा। हनुमान जी घोर निद्रा में चले गए। इधर भगवान राम गंगा पार कर प्रयाग पहुँचे। उन्होंने हनुमान जी को सोते हुए देखा। तथा उनको यह वरदान दिया कि इस सोए हुए हनुमान की मूर्ति के जो दर्शन करेगा। उसे बिना किसी प्रयास के मेरी कृपा प्राप्त होगी। उस व्यक्ति को किसी तरह के भूत-प्रेत या धोखा, षडयंत्र आदि का शिकार नहीं होना पड़ेगा। उसके सारे शत्रु स्वतः ही परास्त हो जाएँगे।
इस तरह हनुमान जी को अमोघ वरदान देकर भगवान राम भारद्वाज ऋषि के आश्रम तथा अक्षयवट का दर्शन करते हुए आगे बढ़ गए। यह वरदान आज अक्षरशः सत्य हो रहा है। इस पुराण प्रसिद्ध सिद्ध हनुमान मंदिर का दर्शन निश्चित ही समस्त बाधा, कष्ट, अरिष्ट आदि को शान्त करता है। इधर प्रातःकाल जब गंगा देवी ने देखा कि एक प्राणी उनकी तरफ ही पाँव फैलाकर सो रहा है। तो उन्होंने अपने आपको अपमानित महसूस करते हुए हनुमान जी को डूबो दिया।
सूर्यदेव ने जब प्रातःकाल अपने शिष्य हनुमान की यह दशा देखी तो उन्होंने गंगा को शाप दिया कि 'तुम्हारा हृदय मैला है जो अज्ञानवश तूने एक सीधे-सादे प्राणी को दण्ड दिया। तेरा सम्मान करते हुए हनुमान ने रात में तुम्हारे ऊपर से होकर गुजरना अच्छा नहीं समझा और तुम दुर्बुद्धि उसे शाप दे बैठी। जा आज से तू प्राणियों के मरे शरीर एवं गन्दगी ढोने वाली हो जाओ।' गंगा नदी के दूषित होने से संसार के समस्त देव संबंधी एवं शुभ कार्य बाधित होने लगे। तब समस्त देवताओं ने मिलकर भगवान सूर्य देव की पूजा अर्चना की। तब भगवान सूर्यदेव ने कहा कि 'जा गंगे! तेरे जल के ऊपर मेरी किरणों के पड़ते ही तुम्हारे जल की पवित्रता बढ़ जाएगी। तथा तुम्हारे जल से मेरा किया गया स्तवन-पूजन कोटि गुना फल देने वाला होगा।' भगवान सूर्य के कहने पर गंगा ने कहा कि हनुमान चतुर्मास व्यतीत होते ही पुनः भगवान राम की सेवा में उपस्थित हो जाएंगे। तब तक हनुमान जी किष्किन्धा पर्वत पर सुग्रीव की सेना में लगे रहे। चतुर्मास बीतने पर भगवान राम सीता की खोज करते हुए किष्किन्धा पर्वत पर पहुंचे वहाँ पर उनकी मुलाकात भगवान राम से हुई।
अस्तु, कालान्तर में जब मुगल शासन के दौरान अकबर के समय में जब बादशाह अकबर ने उस सिद्ध तपोभूमि को अपने किले के रूप में परिवर्तित करना प्रारम्भ किया। तब उसके दीवार की ही सीध में सोए हुए हनुमान का मंदिर पड़ गया। उसने तत्कालीन हिन्दू धर्मगुरुओं एवं पंडितों को रुपए-पैसे का लोभ देकर तथा डरा-धमका कर उस सोए हनुमान जी के मंदिर को अन्यत्र स्थापित करवाने के लिए राजी किया। हनुमान जी के मूर्ति की खुदाई होने लगी। जब समूची मूर्ति
की खुदाई नीचे से कर ली गई। तब उसे उठाया जाने लगा। जब लगातार कोशिश के बावजूद भी मूर्ति नहीं उठी। तब उसे भारी सामान उठाने वाली मशीन से उठाने की कोशिश की जाने लगी। ज्यों ज्यों उस मूर्ति को उठाने की कोशिश की गई। वैसे-वैसे मूर्ति और भी नीचे धसती चली गई।
How to Reach:
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Nearby Railway Station: Prayagraj Junction(PRYJ) - 5km
Nearby Bus Stand : Civil Lines- 4km
Nearby Airport : Prayagraj Airport ( IXD) - 15km
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