श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को उनके 58 वें पुण्यतिथि पर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।श्री लाल बहादुर शास्त्री जी जी ने भारत के इतिहास में अनेकों ऐतिहासिक काम किए। वे अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी भारत मां की सेवा में डटे हुए थे।
उनके जीवन से जुड़ी जानकारियों के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे....👇
Click here
जहाज जब अपने निश्चित स्थान पर रुका तब उसका द्वार खोला गया। विमान से सर्वप्रथम भारतीय प्रतिनिधि मण्डल के साथ ताशकन्द गये भारतीय सैनिक सलाहकार लेफ्टिनेन्ट जनरल श्री पी.पी. कुमार मंगलम निकले। उनके बाद विदेशमंत्री सरदार स्वर्ण सिंह, रक्षामंत्री श्री वाई.पी. चव्हाण व भारतीय प्रतिनिधिम मण्डल के अन्य वरिष्ठ सदस्य विमान से उतरे। श्री चव्हाण नीचे उतरते ही शास्त्री जी के बड़े पुत्र श्री हरिकृष्ण शास्त्री जी के पासआ और उन्हें विमान के अन्दर शास्त्री जी के पार्थिव शरीर के दर्शनार्थ ले गए। पिता के पार्थिव शरीर को देखते ही श्री हरिकृष्ण शास्त्री जी विलख-विलख कर रो पड़े और श्री चव्हाण से लिपट गये। पिता के चरण छूकर जब श्री हरिकृष्ण शास्त्री जी विमान से नीचे आए। इसके थोड़ी देर बाद लेफ्टिनेंट जनरल कैण्डेय. वाइस एडमिरल ए.के. चटर्जी, रीयर एडमिरल एस.एस. कोहली और एयर वाइस मार्शल आर.राजाराम विमान के अन्दर गए और शास्त्री जी के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर को कंधे पर उठाये बाहर आये। इसके बाद तोपगाड़ी शास्त्री जी के निवास स्थान 10 जनपथ की ओर चल पड़ी।
उनके जीवन से जुड़ी जानकारियों के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे....👇
Click here
आइए जानते है उनके जीवन के अंतिम दिन -:
ताशकन्द से वापसी -:
11 जनवरी 1966, ताशकन्द की जनता ने जो आठ दिन पूर्व श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का गर्मजोशी से स्वागत किया था, वही ताशकन्द की जनता आज दिवंगत नेता को अश्रुपूरित नेत्रों से अत्यन्त भावपूर्ण अन्तिम विदाई दे रही थी।
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के पार्थिव शरीर को लेकर रूसी विमान "इल्युशिन-18" दोपहर ढाई बजे पालम हवाई हड्डे पर नई दिल्ली पहुँचा। हवाई अड्डे पर पहले से ही राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, कार्यकारी प्रधानमंत्री श्री गुलजारी लाल नन्दा, कांग्रेस के अध्यक्ष श्री कामराज, राज्यों के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, विदेशी राजदूत व पूरा शास्त्री परिवार उपस्थित था।हवाई अड्डे पर लाखों लोगों की भीड़ उमड़ी पड़ी थी।चारो ओर सिर ही सिर ऐसा लगता था मानो पूरा भारत ही उमड़ पड़ा हो। इतना अपार जन-समूह और सन्नाटा एक आश्चर्यपूर्ण बात थी। इस सन्नाटे के बीच शास्त्री जी के परिवार के विशेषकर के चीत्कार करते हुए रुदन-क्रंदन के कोलाहल में कोई करुण स्वर यदि स्पष्ट सुनाई दे रहा था तो उस सती साध्वी स्त्री श्रीमती ललिता शास्त्रीजी का। उनके रुदन और माथे की मिटी बिन्दी को देखकर लोगों की आँखों में बरबस अश्रुधारा निकल पड़ी थी।
जहाज जब अपने निश्चित स्थान पर रुका तब उसका द्वार खोला गया। विमान से सर्वप्रथम भारतीय प्रतिनिधि मण्डल के साथ ताशकन्द गये भारतीय सैनिक सलाहकार लेफ्टिनेन्ट जनरल श्री पी.पी. कुमार मंगलम निकले। उनके बाद विदेशमंत्री सरदार स्वर्ण सिंह, रक्षामंत्री श्री वाई.पी. चव्हाण व भारतीय प्रतिनिधिम मण्डल के अन्य वरिष्ठ सदस्य विमान से उतरे। श्री चव्हाण नीचे उतरते ही शास्त्री जी के बड़े पुत्र श्री हरिकृष्ण शास्त्री जी के पासआ और उन्हें विमान के अन्दर शास्त्री जी के पार्थिव शरीर के दर्शनार्थ ले गए। पिता के पार्थिव शरीर को देखते ही श्री हरिकृष्ण शास्त्री जी विलख-विलख कर रो पड़े और श्री चव्हाण से लिपट गये। पिता के चरण छूकर जब श्री हरिकृष्ण शास्त्री जी विमान से नीचे आए। इसके थोड़ी देर बाद लेफ्टिनेंट जनरल कैण्डेय. वाइस एडमिरल ए.के. चटर्जी, रीयर एडमिरल एस.एस. कोहली और एयर वाइस मार्शल आर.राजाराम विमान के अन्दर गए और शास्त्री जी के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर को कंधे पर उठाये बाहर आये। इसके बाद तोपगाड़ी शास्त्री जी के निवास स्थान 10 जनपथ की ओर चल पड़ी।
10 जनपथ यात्रा -:
शास्त्री जी के चेहरे पर शान्ति थी और सिर पर अभी भी गांधी टोपी थी। पार्थिव शरीर गुलाब और गेंदे के फूलों से ढका हुआ था। शास्त्री जी का निवास 10 जनपथ शोकाकुल लोगों से ठसाठस भरा था और वहाँ अजीब खामोशी छाई हुई थी। चार बजकर दस मिनट पर शास्त्री जी का पार्थिव शरीर 10 जनपथ पहुँचा। उनका विशाल परिवार, जो मानस में गहरी वेदना समाए बड़ी उत्कंठा से शास्त्री जी के दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहा था, एक बारगी हाहाकार कर उठा। श्रीमती ललिता शास्त्री जी अपने पति का पार्थिव शरीर देखकर चीत्कार उठीं और तत्काल अचेत हो गयीं। कई वर्ष पूर्व जब शास्त्री जी को पहली बार दिल का दौरा पड़ा था, तब से अब तक उनके खान-पान और रहन-सहन पर लगातार कड़ी दृष्टि रखती आई थीं और प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री जी जब-जब भी विदेश जाते थे, श्रीमती ललिता शास्त्री जी भी उनके साथ ही जाती थीं। यही पहला अवसर था जब
शास्त्री जी अकेले ताशकन्द गये।
इसके बाद शास्त्री जी के पार्थिव शरीर का धार्मिक संस्कार सम्पन्न हुआ। रात्रि साढ़े आठ बजे शास्त्री जी के पार्थिव शरीर को 9 फुट ऊँचे बनाये गये मच पर जनता के दर्शनार्थ रखा गया।
इण्डिया गेट की ओर से म्यूजियम की तरफ से दोनों ओर के मार्ग व समीप के पार्क जनता की भीड़ से भरे हुए थे जो अपने प्रिय नेता के दर्शन की प्रतीक्षा में सारी रात लाइन में खड़े रहे।शोक विह्वल श्रीमती ललिता शास्त्री जी अपने पति के चरणों से माथा टेके सारी रात बैठी रोती रहीं । उनके समीप ही उनके चारों पुत्र, पुत्रियां तथा परिवार के अन्य लोग भी रात भर पार्थिव शरीर के पास बैठे रहे। पुष्प, धूप और अगरबत्तियों के सुवासित वातावरण में गीता का तथा अन्य धामिक ग्रन्थों का अखण्ड पाठ 30 पण्डितों द्वारा होता रहा और इस ठिठुरती ठंड में भी सारी रात दर्शनार्थियों का तांता लगा रहा जो अपने प्रिय नेता का आखिरी दर्शन कर आंसू बहाते हुए पुष्पांजलि अर्पित करते नतमस्तक होकर चलते जा रहे थे।
अंतिम यात्रा-:
शास्त्री जी के ज्येष्ठ पुत्र श्री हरिकृष्ण शास्त्री जी, तीनों अन्य पुत्र सर्व श्री अनिल शास्त्री, सुनील शास्त्री अशोक
शास्त्री तथा दोनों पुत्रियों कुसुम व सुमन सहित गाड़ी पर बैठे। 10 जनपथ से शास्त्री जी की अंतिम यात्रा शुरू होते ही वातावरण "शास्त्री जी की जय", "शास्त्री जी अमर रहे", "जय जवान-जय किसान" आदि के गगन भेदी नारों से गूँज उठा। रास्ते भर ये नारे वातावरण को गुजते रहे। हेलीकाप्टर से शास्त्री जी के पार्थिव शरीर पर फूल बरसाया जा रहा था। यह यात्रा जनपथ, राजपथ, इण्डिया गेट, कर्जन रोड, कनाट प्लेस, रादियल रोड 7, बाराखम्बा मार्ग, तिलक मार्ग, इन्द्रप्रस्थ स्टेट से होते हुए शान्ति वन के समीप बने अन्त्येष्टि स्थल तक पहुँची। इसके बाद शास्त्री जी के पार्थिव शरीर को वरिष्ठ सेना अधिकारियों ने तोपगाड़ी से उठाया और मातमी धुन के बीच पार्थिव शरीर को धीरे-धीरे चिता तक ले आए। चन्दन की चिता पर शास्त्री जी के पार्थिव शरीर को रखने के बाद शववाहकों ने नत मस्तक होकर सलामी दी। तीनों सेनाओं ने शोक सलामी दी।
शास्त्री जी के पार्थिव शरीर को 12 बजकर 17 मिनट पर चिता पर रखा गया और इनके ज्येष्ठ पुत्र श्री हरिकृष्ण शास्त्रीजी ने 12 बजकर 32 मिनट पर चिता को प्रज्वलित किया।चिता में 50 किलोग्राम घी, 60 किलोग्राम हवन सामग्री तथा एक टीन गंगाजल चढ़ाया गया। शास्त्री जी के इस अन्तिम विश्राम स्थल को "विजय
घाट" का नाम दिया गया।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
पूर्णाहुति-:
शास्त्री जी के पार्थिव शरीर के पंचभूतों में विलीन होने के बाद उनकी भस्मी के ताम्र कलशों को 10 जनपथ में दर्शनार्थ रखा गया। प्रतिदिन हजारों लोग इन भस्मी कलशों का दर्शन कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते थे । 24 जनवरी 1966 को विशेष रेलगाड़ी द्वारा शास्त्री जी के मुख्य भस्मी कलश को प्रयाग (इलाहाबाद) लाया गया। शास्त्री जी की कर्मस्थली इलाहाबाद में इन्हें श्रद्धांजलि देने जन सैलाब उमड़ पड़ा।
इलाहाबाद स्टेशन से लेकर संगम तक पूरा सड़क नरमुंडों से भरा पड़ा था। एक अन्य भस्मी कलश को 27
जनवरी 1966 को विशेष रेलगाड़ी द्वारा शास्त्री जी की जन्मस्थली व पैतृक नगर काशी (वाराणसी) लाया गया। यहाँ विद्यापीठ के प्रांगण में शास्त्री जी की भस्मी कलश को नगरवासियों के दर्शनार्थ रखा गया। अपने "नन्हे" को
श्रद्धांजलि देने पूरी काशी उमड़ पड़ी। गंगा के तट पर लगभग 5 लाख लोगों ने अपने अश्रु अंजलि के साथ इनके भस्मी को गंगा में प्रवाहित किया। वो मां गंगा जिनके आशीर्वाद से ये मिले, वो मां गंगा जिनके लहरों पर खेलकर ये बड़े हुए, उसी मां गंगा के पुत्र आज अपनी मां के आँचल में सदा-सदा के लिए सो गये और पीछे छोड़ गये अपनी अमर कथा जिसे सुना-सुनाकर प्रत्येक भारतवासी अपना सिर गर्व से ऊँचा कर सकेगा।
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी चले गये, परन्तु उनकी प्रतिच्छवि मनुष्यता के अन्तस्थल में बस गई है। इस प्रकार ये हमारे बीच से गए नहीं, वरन स्थूल से सूक्ष्म बनकर हमारे बीच विद्यमान हैं। इनके दिखाए गए मार्ग सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे और इनसे प्राप्त प्रेरणा हमें सदैव अनुप्राणित करती रहेगी। 20 अप्रैल 1966 को भारत के राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च
पुरस्कार "भारत रत्न" प्रदान किया।
हम और आप रहें न रहें, लेकिन यह झंडा रहना चाहिए और देश रहना चाहिए। मुझे विश्वास है कि यह झंडा रहेगा,हम और आप रहें न रहें लेकिन भारत का सिर ऊँचा होगा, भारत दुनिया के देशों में एक बड़ा देश होगा। 1
-लाल बहादुर शास्त्री
Bhut hi achha blog hai bhai sahab
ReplyDeleteAap log aaise hi jankari late raho .
Nice
ReplyDelete