खुसरो बाग करीब 395 साल पुराना मकबरा प्रयागराज में स्थित संगम नगरी से 8 किलो मीटर दूरी पर मोहल्ला खुल्दाबाद में स्थित है खुसरौ सम्राट जहांगीर के सबसे बड़े पुत्र थे। इस पार्क का संबंध भारत के स्वतंत्रता संग्राम से भी है। प्रयागराज शहर के पश्चिम छोर प्रयागराज रेलवे स्टेशन के पास स्थित खुसरो बाग मुगलकालीन इतिहास की एक अमिट धरोहर हैं। यह 17 बीघे के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ हैं। जहागीर ने इसे अपना आरामगाह बनाया था। जहागीर के पुत्र खुसरो के नाम पर ही इसका नाम खुसरो बाग पडा।
इस बाग में तीन मकबरे हैं।
1) पहला मकबरा शहजादे खुसरो का हैं।
2) दूसरा मकबरा खुसरो की राजपूत मा मां शाँह बेगम के लिये बनाया गया और
3) तीसरा मकबरा सुलतान निसार बेगम के लिए बनाया गया था |
खुसरो बाग के अन्दर जाने का मुख्य द्वार अति विशाल हैं। इसमें अनेकोँ घोडोँ की नाल लागी हुई हैं ऐसा माना जाता है की लोग मन्नते मांगते है और कार्य के पूरा होने पर दरवाजे में घोड़े के नाल लगवा देते है |
ऐतिहासिक भव्यता के अलावा भी, खुसरो बाग में कई सारे आम और अमरुद के पेड़ है। इन पेड़ो पौधों के लिए भी खुसरो बाग काफी जाना जाता है। यहाँ के अमरुदोँ को विदेश में निर्यात किया जाता हैं।
साथ ही वर्तमान में यहाँ पौधशाला हैं। जिससें हजारोँ पौधोँ की बिक्री की जाती हैं।
खुसरो बाग यह बाग मुग़ल वास्तुकला का एक उदाहरण है। खुसरो के नाम से इस बाग को क्यों जाना जाता है,
और इस बाग महत्व इसलिए है जहांगीर एक ऐसा शासक था जो तख्त ताज के लिए अपने पुत्र खुसरो की दोनो आंखे फोड कर अपनें आरामगाह में बंदी बना के रखा था |
क्योंकि खुसरो एक ऐसा पहला व्यक्ति था जिसे बाग में बंदी बनाकर रखा गया था क्यों की उसने उसके पिता जहागीर के खिलाफ ही सन 1606 में विद्रोह कर दिया था।
सिंहासन पाने के लिए खुसरो ने लड़ाई लड़ी थी जिसमे उसे बड़ी निर्दयता से मार दिया गया था तब उसकी उम्र केवल 34 साल की थी। उस लड़ाई में जहागीर के दुसरे लड़के खुर्रम ने खुसरो को ख़त्म करने के लिए लड़ाई में हिस्सा लिया था।
उसके बाद में खुर्रम बादशाह बन गया। खुर्रम बड़ा होकर शाहजहां बन गया खुसरो की कब्र का निर्माण सन 1622 में पूरा हो गया था और सुलतान निसार बेगम जिसकी कब्र शाह बेगम और खुसरो की कब्र के बीच में थी, उसका निर्माण सन 1624-25 के दौरान करवाया गया था।
1857 में जब सिपाही विद्रोह हुआ था तब इस खुसरो बाग ने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान का काम किया था। क्यों की उस वक्त सिपाही इसी बाग में आकर सलाह मशवरा लिया करते थे और युद्ध की आगे की रणनीति बनाते थे।
The Architecture of khusro bagh
रेतीले पत्थर से बने हुए तिनो भी मकबरे इस बाग में देखने को मिलते है जो मुग़ल वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करते है। इस बाग में जितने भी प्रवेश द्वार, और शाह बेगम की तीन स्तरीय कब्र जो बनायीं गयी है उसका पूरा श्रेय जहांगीर के मुख्य कारागीर आका राजा को ही जाता है।
शाह बेगम जो पहले मान बाई हुआ करती थी वो आमेर के राजा भगवंत दास की लड़की थी। उसके पति और उसका लड़का खुसरो के बीच में हमेशा होनेवाली नोकझोक से दुखी होकर शाह बेगम ने सन 1604 में अफीम खाकर आत्महत्या कर ली थी। उसके मकबरे को आका राजा ने सन 1606 में बनवाया काम शुरू हुआ था और 1627 में पूर्ण तरीके से बन गया था
उसका मकबरा तीन स्तरों में भी बनवाया गया था। कुछ लोग तो उसके मकबरे की तुलना फतेहपुर सिकरी से की थी। उसकी कब्र पर एक बहुत बड़ी छत्री बनवाई गयी थी।
बेगम की कब्र के बगल में ही खुसरो की बहन सुलतान निसार की कब्र है। वास्तुकला की नजर से देखा जाए तो उसकी कब्र सबसे बड़ी और विस्तृत थी और वो बहुत ऊंचाई पर भी बनवाई गयी थी। खुसरो बाग में सबसे आखरी में खुसरो की कब्र आती है
खुसरो बाग के अंदर कई वर्ष पुराना एक कुआ भी देखने को मिलता है यहां अंदर जाना निशुल्क है वहा पर सिविल सर्विस और कई अन्य विभाग की तैयारी करने वाले अनेक लोग गर्मी में पेड़ो के नीचे पढ़ते हुए भी दिखेंगे क्युकी खुसरो बाग का वातावरण बहुत शांत और बहुत शीतल है गर्मी में महीनो में ये दृश्य देखने को मिल सकता है खुसरो बाग के अंदर प्रवेश करते ही कई पेड़ कई वर्षो पुराने भी दिखते है
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ReplyDeleteThank you prayag bhumi
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