आजकल यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के बारे में देशभर में गरमागरी चल रही है। इस मसले पर विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों के विचार मुद्रित हो रहे हैं, जिससे यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह क्या है और इसका महत्व क्या है।भारतीय समाज में धर्म, सांस्कृतिक विविधता और कई विशेषताओं के कारण एक एक तरफा सिविल कोड का प्रस्ताव बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) इस दिशा में एक प्रयास है, जिसका उद्देश्य समाज में समानता और न्याय की मानसिकता को प्रोत्साहित करना है। इस पोस्ट में हम यूनिफॉर्म सिविल कोड के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।👇
यह एक धार्मिक और सामाजिक मामलों से संबंधित कानून विषयक एक प्रस्ताव है जिसे "समान नागरिक संहिता" के रूप में जाना जाता है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य, सभी नागरिकों के लिए एक सामान्य कानून बनाना है जो विवाह, तलाक, पोषण, विरासत और अन्य संबंधित मुद्दों में समान रूप से लागू होगा। इसका मतलब है कि इस संहिता के अंतर्गत, किसी भी धर्म, जाति या लिंग के आधार पर अलग-अलग सिविल कानून नहीं होंगे।
वर्तमान में, भारत में एक समान नागरिक संहिता के प्रवर्तन के लिए प्रयासों की बात चल रही है, जिससे धर्म, लिंग और यौन अभिरुचि के आधार पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। वर्तमान में, विभिन्न समुदायों के व्यक्तिगत कानून धार्मिक ग्रंथों द्वारा निर्धारित होते हैं। इस समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव का उद्देश्य है कि सभी नागरिकों को उनके धर्म, लिंग और यौन अभिरुचि की परवाह किए बिना एक सामान्य कानून के तहत सुरक्षा मिले।
यह विवादास्पद मुद्दा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय है, जहां धर्मनिरपेक्षता और संप्रदायों के राजनीतिक समर्थन द्वारा विवादित होता है। वर्तमान में, व्यक्तिगत कानून सार्वजनिक कानून से अलग हैं, और इस संदर्भ में, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं, जबकि अनुच्छेद 44 राष्ट्रीय नीतियों के प्रवर्तन को लेकर समान कानून को बढ़ावा देते हैं।
व्यक्तिगत कानून:
ब्रिटिश भारत (1858 - 1947)
व्यक्तिगत कानून ब्रिटिश शासन के दौरान पहली बार तैयार किए गए थे और मुख्य रूप से हिंदू और मुस्लिम नागरिकों के लिए लागू किए गए थे। अंग्रेजों को समुदाय के नेताओं के विरोध का डर था और इसलिए उन्होंने इस घरेलू क्षेत्र में व्यापक हस्तक्षेप से बचने का प्रयास किया। गोवा, जो उस समय पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत था, उसमें एक समान पारिवारिक कानून को स्थान दिया गया था जिसे "गोवा नागरिक संहिता" के रूप में जाना जाता था और आज तक यह भारत का एकमात्र राज्य है जिसमें समान नागरिक संहिता लागू है। भारत की आजादी के बाद, हिंदू कोड बिल पेश किया गया, जिसने बौद्ध, हिंदू, जैन और सिख धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों में व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया और सुधार किया, हालांकि इसमें ईसाई, यहूदी, मुस्लिम और पारसी समुदायों को छूट मिली, जिन्हें हिंदू समुदाय से अलग माना गया।
समान नागरिक संहिता के उल्लेख परिवर्तन:
भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद में समान नागरिक संहिता का उल्लेख है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि हमारा लक्ष्य समान नागरिक कानून लागू करना होगा। इसके साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारे में केंद्र सरकार की दिशा जानने की कोशिश की है।
भारतीय संविधान की संशोधन प्रस्तावना में 42वें संशोधन के माध्यम से 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द को प्रविष्ट किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान का उद्देश्य भारत के सभी नागरिकों के साथ धार्मिक भेदभाव को समाप्त करना है, लेकिन वर्तमान समय तक समान नागरिक संहिता को लागू न होने के कारण भारत में एक बड़ी संख्या के लोग अपने अधिकारों से वंचित हैं।
मूलभूत अधिकारों में 'विधि के शासन' की अवधारणा होती है, जिसके अनुसार, सभी नागरिकों के लिए एक समान विधि होनी चाहिए। लेकिन स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी एक बड़ी समूह अपने मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। इस प्रकार, समान नागरिक संहिता का लागू न होना एक प्रकार से विधि के शासन और संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघन है।
सामाजिक संस्कृति के नाम पर किसी वर्ग की राजनीतिक समानता का हनन करना संविधान के साथ-साथ संस्कृति और समाज के साथ अन्याय है। प्रत्येक संस्कृति और सभ्यता में महिलाओं और पुरुषों को मूलभूत नियमों के अंतर्गत समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए, लेकिन समय के साथ इन नियमों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर असमानता उत्पन्न की जाती है।
समान नागरिक संहिता से संबंधित लाभ:-
अलग-अलग धर्मों के विभिन्न कानूनों के कारण न्यायपालिका को बोझ महसूस होता है। समान नागरिक संहिता के लागू होने से इस जटिलता से छुटकारा मिलेगा और अदालतों में लंबित मामलों के निर्णय तेजी से होंगे। सभी के लिए समान कानून लागू होने से देश में एकता की भावना मजबूत होगी। जहां नागरिकों के बीच एकता होती है, वहां किसी भी प्रकार का विवाद नहीं होता है और देश विकास के पथ पर गति प्राप्त करता है। समान नागरिक संहिता के लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा। वर्तमान में कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। इसके अलावा, महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी समान नियम लागू होंगे।
धार्मिक आदिकारियों के दबाव के कारण सामाजिक वर्गों के अधिकारों का हनन रोका जाना चाहिए और सभी के साथ समानता का अनुपालन किया जाना चाहिए। 'विधि के समक्ष समानता' की अवधारणा के तहत सभी को समानता के साथ व्यवहार करना चाहिए। वैश्विकरण के आधार पर महिलाओं की भूमिका समाज में महत्वपूर्ण हो गई है, इसलिए उनके अधिकारों और स्वतंत्रता में किसी भी प्रकार की कमी उनके व्यक्तिगतता और समाज के लिए हानिकारक है। सर्वोच्च न्यायालय ने संपत्ति पर समान अधिकार और मंदिर प्रवेश के समान अधिकार जैसे न्यायिक निर्णयों के माध्यम से समाज में समानता के लिए प्रयास किया है, इसलिए सरकार और न्यायपालिका को समान नागरिक संहिता को लागू करने के प्रयासों में प्रवीण होना चाहिए।
कौन - कौन से देश मे लागू है समान नागरिक संहिता :-
विश्व के अधिकांश आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं, जैसे कि अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांगलादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट, आदि। इन देशों ने समान नागरिक संहिता को अपनाया है जिससे विभिन्न समुदायों के लोगों के लिए एक सामान्य कानून लागू होता है।
हालांकि, भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है और अधिकांश कानून धर्म के आधार पर निर्धारित होते हैं। हिंदू, सिख, जैन, और बौद्ध समुदायों के लिए एक व्यक्तिगत कानून होता है, जबकि मुस्लिम और ईसाई समुदायों के लिए अलग-अलग कानून होते हैं। मुस्लिम कानून शरीयत पर आधारित होता है, जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित होते हैं।
इस परिस्थिति में, भारत को समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है। समान नागरिक संहिता के लागू होने से सभी नागरिकों को एक सामान्य कानून के तहत सुरक्षा और संरक्षण मिलेगा। इससे देश में एकता और समानता की भावना मजबूत होगी और न्यायपालिका को विविधता से निपटने में सुविधा मिलेगी। सरकार को समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए सक्रियता दिखानी चाहिए और न्यायपालिका को इसे समर्थन करने के लिए समर्पित होना चाहिए। यह देश के विकास और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में महत्वपूर्ण साबित होगा।
यूनिफॉर्म सिविल कोड का उद्देश्य समाज में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा देना है, जो विभिन्न धर्म और संस्कृतियों के लोगों के बीच एक मजबूत और संरचित कानूनी ढांचे की स्थापना कर सकता है। यह एक विचारशील प्रस्ताव है जो समाज में न्यायपूर्ण और समान दृष्टिकोण की स्थापना करने का प्रयास करता है।