नागरिक संशोधन अधिनियम-Citizen Amendment Act (CAA) |
नागरिकता संशोधन कानून है ? (सरल भाषा में)
अधिनियम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, पारसी, बौद्ध और ईसाई प्रवासियों के लिए अवैध अप्रवासी की परिभाषा में संशोधन करने का प्रयास किया गया है, जो बिना दस्तावेज के भारत में रहते हैं। उन्हें छह साल में फास्ट ट्रैक भारतीय नागरिकता दी जाएगी। अब तक 12 साल का निवास प्राकृतिककरण के लिए मानक पात्रता की आवश्यकता है।
यह कानून उन लोगों पर लागू होता है जो धर्म के आधार पर उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने के लिए मजबूर है। इसका उद्देश्य ऐसे लोगों को अवैध प्रवास की कार्यवाही से बचाना है। नागरिकता के लिए कट-ऑफ की तारीख 31 दिसंबर, 2014 है, जिसका अर्थ है कि आवेदक को उस तारीख को या उससे पहले भारत में प्रवेश करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने राज्यसभा द्वारा पारित किए जाने के एक दिन बाद, 12 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को अपनी सहमति दे दी।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक (Citizenship Amendment Bill) 2019 (विस्तार से)-:
1. नागरिकता अधिनियम 2016 में यह प्रावधान था कि किसी OCI कार्ड धारक का कार्ड इन 5 कारणों से रद्द किया जा सकता है; वह
धोखाधड़ी से रजिस्ट्रेशन प्राप्त करना, संविधान के प्रति अरुचि दिखाना, युद्ध के दौरान शत्रु से दोस्ती बढ़ाना, भारत की संप्रभुता, राज्य या सार्वजनिक हित की सुरक्षा से खिलवाड़ करता है, या OCI कार्ड के रजिस्ट्रेशन मिलने के 5 सालों के भीतर उसे दो साल या अधिक कारावास की सजा सुनाई गई है.
अब नागरिक संशोधन अधिनियम, 2019 इस एक्ट में परिवर्तन कर देगा और इसमें यह प्रावधान जोड़ा गया है कि यदि कोई OCI कार्ड धारक, भारत सरकार द्वारा बनाये गये किसी कानून का उल्लंघन करता है तो उसका OCI कार्ड रद्द किया जा सकता है ।
2. नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 कहता है कि भारत की नागरिकता प्राप्त करने पर;
(i) अवैध प्रवासियों को प्रवेश की तारीख (31 दिसंबर, 2014 से पहले) से भारत का नागरिक माना जाएगा,
(ii) उनके अवैध प्रवास के संबंध में उनके खिलाफ सभी कानूनी कार्यवाही बंद हो जाएगी ।
हालाँकि असम, मेघालय, मिजोरम, या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों में अवैध प्रवासियों के लिए नागरिकता पर प्रावधान लागू नहीं होंगे.
3. नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2016 में यह प्रावधन था कि प्राकृतिक रूप से नागरिकता प्राप्त करने के लिए इन व्यक्तियों ( अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों) को कम से कम 6 वर्ष भारत में रहना चाहिए लेकिन नया बिल इस अवधि को घटाकर 5 वर्ष कर देगा अर्थात वे भारत में रहने के 5 सालों की बाद ही भारत के नागरिक बन जायेंगे ।
तो ये थे नागरिकता संशोधन कानून,2019 के कुछ प्रावधान जो कि 3 देशों के 6 समुदायों के लोगों को भारत की नागरिकता देते हैं ।
नागरिकता संशोधन विधेयक 1955 क्या कहता है? (Citizenship Amendment Bill 1955)-:
नागरिकता अधिनियम, 1955; भारत की नागरिकता प्राप्त करने की 5 शर्तों को बताता है, जैसे-जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण, प्राकृतिक एवं क्षेत्र समविष्ट करने के आधार पर. इस अधिनियम में 7 बार संशोधन किया जा चुका है.
नागरिकता संशोधन विधेयक 1955 में प्राकृतिक रूप से नागरिकता हासिल करने के लिए व्यक्ति को कम से कम 11 वर्ष भारत में रहना अनिवार्य था जो (3 देशों के अल्पसंख्यक जो धार्मिक प्रताड़ना ) कि बाद में घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया था लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 में इस अवधि को घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया है ।
इसलिए पड़ी जरूरत-:
सन 1947 में जब धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ, तब लाखों की संख्या में लोगों ने धर्म के आधार पर देश बदला। बहुत से मुसलमान भारत में ही रह गए और बहुत से हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन, बौद्ध पाकिस्तान में बसे रहे। भारत हिंदू राष्ट्र नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्ष देश बना ताकि भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक खुद को सुरक्षित समझें और उन्हें समान अधिकार मिलें। भारत ने अपने संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार बना दिया। यही कारण है कि विभाजन के बाद भारत में बचे 8 फीसदी मुसलमान आज बढ़कर लगभग 14 प्रतिशत (2011 की जनगणना के अनुसार) हो गए हैं लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं की किस्मत भारतीय मुसलमानों जैसी न तब थी, न आज है। प्रगतिशील और उदारवादी विचारधारा को त्यागकर पाकिस्तान और बांग्लादेश इस्लामिक देश बन गए और अल्पसंख्यकों का जीवन नर्क हो गया।
बिल के पीछे केंद्र सरकार का तर्क क्या है?
भारत एक सेक्युलर, संप्रभुता संपन्न और शांतिप्रिय देश है. शायद यह पूरी दुनिया में ‘विविधता में एकता’ का परिचय करने वाला यह अकेला देश है । केंद्र का कहना है कि ये अल्पसंख्यक समूह मुस्लिम-बहुल राष्ट्रों में उत्पीड़न से बच गए हैं। हालांकि, तर्क संगत नहीं है - बिल सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा नहीं करता है, न ही यह सभी पड़ोसियों पर लागू होता है। अहमदिया मुस्लिम संप्रदाय और यहां तक कि शिया पाकिस्तान में भेदभाव का सामना करते हैं। रोहिंग्या मुसलमानों और हिंदुओं का पड़ोसी बर्मा में उत्पीड़न, और पड़ोसी श्रीलंका में हिंदू और ईसाई तमिलों का उत्पीड़न।
उत्तर पूर्व का कितना बिल प्रभाव डालता है?
सीएबी संविधान की छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा - जो असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में स्वायत्त आदिवासी बहुल क्षेत्रों से संबंधित है। यह बिल उन राज्यों पर भी लागू नहीं होगा जिनके पास इनर-लाइन परमिट शासन है (अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम)।
नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर या एनआरसी जिसे हमने असम में देखा था, अवैध आप्रवासियों को लक्षित किया। एक व्यक्ति को यह साबित करना था कि या तो वे, या उनके पूर्वज 24 मार्च, 1971 को या उससे पहले असम में थे। NRC, जिसे देश के बाकी हिस्सों में बढ़ाया जा सकता है, CAB के विपरीत धर्म पर आधारित नहीं है।
संवैधानिकता पर सवाल-:
कुल 6 धाराओं के इस कानून में धारा 2 से अवैध प्रवासी जिसे या घुसपैठिया की परिभाषा में स्पष्ट किया गया है कि 31 दिसम्बर 2014 से पूर्व भारत में प्रवेश करने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान के हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के व्यक्तियों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। उल्लेखनीय है कि भारत में अवैध प्रवासी नागरिकता का पात्र नहीं है। लेकिन अब सभी गैर मुस्लिम घुसपैठिए नागरिकता के पात्र हो जाएंगे।
यह धारा पूर्वोतर के अनुसूची-6 और इनर लाइन वाले राज्यों पर नहीं लागू होगी। नए नागरिकता अधिनियम की धारा 6 से तीसरी अनुसूची में देशीयकरण से नागरिकता की उल्लेखित शर्तों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान के अवैध प्रवासियों के लिए छूट का प्रावधान जोेड़ा गया हैै, लेकिन इस छूट के अतिरिक्त शेष शर्तों का पालन उन्हें भी नागरिकता के लिए करना होगा। यद्यपि ऐसे नागरिकों को 11 वर्ष भारत में रहने की शर्त के स्थान पर पांच वर्ष का ही पालन करना होगा।
हालाँकि कुछ लोग ऐसा तर्क दे रहे हैं कि यह संशोधन, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि यह किसी के साथ जाति, धर्म, लिंग, स्थान आदि के आधार पर भेदभाव का विरोध करता है.
गृह मंत्रालय को कानून के संचालन के लिए नियमों को अधिसूचित करना बाकी है। नियमों की अधिसूचना को अब इस संबंध में निर्णय के रूप में इंतजार करना पड़ सकता है क्योंकि विशेषज्ञों की सलाह लेने के बाद यह मामला लिया जाएगा क्योंकि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उप-न्यायाधीश है।
गृह मंत्रालय को कानून के संचालन के लिए नियमों को अधिसूचित करना बाकी है। नियमों की अधिसूचना को अब इस संबंध में निर्णय के रूप में इंतजार करना पड़ सकता है क्योंकि विशेषज्ञों की सलाह लेने के बाद यह मामला लिया जाएगा क्योंकि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उप-न्यायाधीश है।
अधिनियम के खिलाफ याचिकाएं 22 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं। मामले में विशेषज्ञों का मानना है कि नियमों को कानूनी आधार पर चुनौती दी जा सकती है, सरकार 22 जनवरी तक इंतजार करेगी। चूंकि शीर्ष अदालत ने सीएए पर रोक नहीं लगाई थी, इसलिए गृह मंत्रालय सभी नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं, के बारे में नियमों को सूचित कर सकते हैं, प्राधिकारी और राज्य की न्यूनतम आवश्यकताओं और कट-ऑफ की तारीख को सूचित करें।
नागरिक संशोधन अधिनियम से जुड़े कुछ सवाल और उनके जवाब-:
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019, की संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए हैं और इसे मनमाना, भेदभावपूर्ण और भारतीय राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र
के खिलाफ होने का दावा किया जा रहा है। इन सवालों का मूल्यांकन करने के लिए और उस मिथक को तोड़ने के लिए, जो इस संशोधन के खिलाफ प्रचारित किया जा रहा है एवं इसकी वैधता का पता लगाने के लिए कुछ
सवालों के जवाब निम्नवत हैं:
सवालों के जवाब निम्नवत हैं:
1. भारत अपने नागरिकों को कैसे परिभाषित करता है और भारतीय नागरिकता के मानदंड के लिए राजनीतिक, संवैधानिक और कानूनी पृष्ठभूमि क्या है?
* भारतीय नागरिकता के विचार को समझने के लिए हमें संविधान सभा के दौर में जाना होगा। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से शरणार्थियों की भारी संख्या के बीच भारतीय संविधान निर्माताओं के लिए नागरिकता के प्रावधानों का मसौदा तैयार करना लगभग असंभव था।* क्योंकि उस समय की स्थिति नागरिकता के प्रावधानों को अंतिम रूप देने के लिए अनुकूल नहीं थी, नागरिकता का मुद्दा संविधान के भाग II में अनुच्छेद 11 पर निर्भर था जो संसद को भारतीय नागरिकता के लिए एक विस्तृत रूपरेखा तैयार करने का विशेषाधिकार देता है। इस के कारण नागरिकता अधिनियम, 1955 अस्तित्व में आया। इसलिए, यह कहना गलत है कि संसद को नागरिकता के मानदंडों में कोई बदलाव लाने का कोई अधिकार नहीं है, यह तर्क संविधान निर्माताओं के इरादों के विपरीत है। सच्चाई यह है कि संविधान सभा ने कभी भी नागरिकता के मानदंडों को
अंतिम रूप नहीं दिया, बल्कि संसद को संविधान ने भारतीय नागरिकता के मानदंड को अंतिम रूप देने का अधिकार दिया है।
2.वर्तमान संशोधन क्या है? यह क्या कहता है और इसके परिणाम क्या हैं?
1955 अधिनियम के अनुसार किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता देने के लिए जन्म, वंश, प्राकृतिकरण, पंजीकरण और भारत द्वारा किसी भी क्षेत्र का अधिग्रहण जैसी पांच श्रेणियां हैं। नागरिकता अधिनियम में यह संशोधन मुख्य रूप से प्राकृतिकरण की प्रक्रिया द्वारा नागरिकता देने के प्रस्ताव को संशोधित करता है-
* विधेयक के खंड 2 में नागरिकता अधिनियम, 1955 में कहता है कि अब कोई भी व्यक्ति जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित है, जिन्होंने
31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया था और जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3 की उप-धारा (2) के उपखंड (सी) के तहत या विदेशी अधिनियम, 1946 या इसके तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश के प्रावधानों से आवेदन की छूट दी गई है उनको नागरिकता अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
* विधेयक का खंड 3 नागरिकता अधिनियम, 1955 में एक नई धारा 6 बी सम्मिलित करता है; यह विधेयक के खंड 2 के तहत और धारा 6 बी (2) के तहत संरक्षित व्यक्तियों के लिए प्राकृतिकरण द्वारा नागरिकता प्रमाण
पत्र प्रदान करने का प्रावधान करता है, ऐसे व्यक्तियों को भारतीय क्षेत्र में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा।
* संशोधित अधिनियम की नई धारा 6बी (4) में यह प्रावधान है कि विधेयक के उपर्युक्त खंड 2 असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्र पर लागू नहीं होगा जैसाकि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल है इसके अतिरिक्त बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के
तहत अधिसूचित 'द इनर लाइन' क्षेत्रों में भी यह प्रावधान लागू नहीं होगा।
* विधेयक का खंड 6 अधिनियम की तीसरी अनुसूची में संशोधन करता है, जो अधिनियम की धारा 1( 6) के तहत प्राकृतिकरण के लिए योग्यता प्रदान करता है। यह तीन मुस्लिम बहुल देशों से उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए प्राकृतिकरण द्वारा और वर्तमान मामले में नागरिकता के लिए नए आवेदन से संबंधित है। यह खंड अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के लिए भारत में निवास या भारत सरकार के अंर्तगत सेवा शर्त
को कम से कम पांच वर्ष करता है जो पूर्व में ''कम से कम ग्यारह वर्ष'' थी।
* इसलिए, तीन मुस्लिम देशों के सताए हुए अल्पसंख्यक अब अधिनियम की धारा 6बी के तहत नागरिकता के हकदार हैं, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है और उन्हें इस अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और भारत में उनके इस तिथि के पूर्व आगमन पर उन्हें नागरिकता दी जाएगी। हालांकि, यदि 31 दिसंबर, 2014 के बाद उक्त व्यक्तियों का भारत में प्रवेश हुआ, तो वे अधिनियम की तीसरी अनुसूची के साथ पढ़े अधिनियम की धारा 6 के तहत नागरिकता के लिए पात्र होंगे, जो भारत में कम से कम 5 वर्षों के लिए उनके निवास का प्रावधान करता है। जो पहले 11 साल था, जैसा कि प्राकृतिकिकरण द्वारा नागरिकता पाने के लिए अन्य देशों के लोगों पर लागू होता है।
31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में प्रवेश किया था और जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 3 की उप-धारा (2) के उपखंड (सी) के तहत या विदेशी अधिनियम, 1946 या इसके तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश के प्रावधानों से आवेदन की छूट दी गई है उनको नागरिकता अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
* विधेयक का खंड 3 नागरिकता अधिनियम, 1955 में एक नई धारा 6 बी सम्मिलित करता है; यह विधेयक के खंड 2 के तहत और धारा 6 बी (2) के तहत संरक्षित व्यक्तियों के लिए प्राकृतिकरण द्वारा नागरिकता प्रमाण
पत्र प्रदान करने का प्रावधान करता है, ऐसे व्यक्तियों को भारतीय क्षेत्र में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा।
* संशोधित अधिनियम की नई धारा 6बी (4) में यह प्रावधान है कि विधेयक के उपर्युक्त खंड 2 असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्र पर लागू नहीं होगा जैसाकि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल है इसके अतिरिक्त बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के
तहत अधिसूचित 'द इनर लाइन' क्षेत्रों में भी यह प्रावधान लागू नहीं होगा।
* विधेयक का खंड 6 अधिनियम की तीसरी अनुसूची में संशोधन करता है, जो अधिनियम की धारा 1( 6) के तहत प्राकृतिकरण के लिए योग्यता प्रदान करता है। यह तीन मुस्लिम बहुल देशों से उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए प्राकृतिकरण द्वारा और वर्तमान मामले में नागरिकता के लिए नए आवेदन से संबंधित है। यह खंड अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के लिए भारत में निवास या भारत सरकार के अंर्तगत सेवा शर्त
को कम से कम पांच वर्ष करता है जो पूर्व में ''कम से कम ग्यारह वर्ष'' थी।
* इसलिए, तीन मुस्लिम देशों के सताए हुए अल्पसंख्यक अब अधिनियम की धारा 6बी के तहत नागरिकता के हकदार हैं, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है और उन्हें इस अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और भारत में उनके इस तिथि के पूर्व आगमन पर उन्हें नागरिकता दी जाएगी। हालांकि, यदि 31 दिसंबर, 2014 के बाद उक्त व्यक्तियों का भारत में प्रवेश हुआ, तो वे अधिनियम की तीसरी अनुसूची के साथ पढ़े अधिनियम की धारा 6 के तहत नागरिकता के लिए पात्र होंगे, जो भारत में कम से कम 5 वर्षों के लिए उनके निवास का प्रावधान करता है। जो पहले 11 साल था, जैसा कि प्राकृतिकिकरण द्वारा नागरिकता पाने के लिए अन्य देशों के लोगों पर लागू होता है।
3. क्या यह विधेयक वास्तव में एक विशेष समुदाय के साथ भेदभाव कर रहा है, क्या यह वास्तव में मुस्लिम विरोधी है?
* धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए, जो अपने ही देशों में अपनी धार्मिक पहचान के कारण उत्पीड़न का शिकार होते हैं, उनके संरक्षण के लिए यदि भारत कोई कार्रवाई करता है तो यह भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में कोई बदलाव नहीं करता है। जैसा कि भ्रम फैलाया जा रहा है। यह हमारे धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप को मजबूत से बनाए रखता है, जो व्यक्तिगत धार्मिक मान्यता के बावजूद हर व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करना चाहता है। इस विधेयक का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के कल्याण को सुनिश्चित करना है जो इन तीन देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। चूंकि मुस्लिम न तो इन देशों में अल्पसंख्यक हैं और न ही धार्मिक आधार पर उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए उन्हें स्पष्ट रूप से इसमें शामिल नहीं किया गया है। इस बात पर ध्यान देना बेहद जरुरी है कि नागरिकता संशोधन विधेयक भारतीय मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं करता है जो इसके नागरिक हैं, इसका उद्देश्य केवल उन अल्पसंख्यकों की रक्षा करना है जो अपने संबंधित देशों में अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण सताए जाते हैं।
* किसी भी देश या किसी भी धर्म का कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है यदि वह नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 के अनुसार ऐसा करने के लिए पात्र है। सीएबी इन
प्रावधानों के साथ कोई छेड़खानी नहीं करता है।
* किसी भी देश या किसी भी धर्म का कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है यदि वह नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 के अनुसार ऐसा करने के लिए पात्र है। सीएबी इन
प्रावधानों के साथ कोई छेड़खानी नहीं करता है।
4. अधिनियम की धारा 6 बी के तहत आवेदन करने के लिए 31 दिसंबर, 2014 तिथि क्यों निर्धारित किया गया है?
* ऐसा अधिनियम की तीसरी अनुसूची के अनुसार अधिनियम की धारा 6 के तहत आवेदन करने के लिए 5 वर्ष की बाध्यता के कारण किया गया है। इस विशेष तिथि तक, ये सताए गए वर्ग अधिनियम की तीसरी अनुसूची के
तहत मानदंडों को पूरा करते हैं यानी 5 साल का निवास, जो कि आवश्यक है, इसलिए यह तारीख निर्धारित हुई है।
तहत मानदंडों को पूरा करते हैं यानी 5 साल का निवास, जो कि आवश्यक है, इसलिए यह तारीख निर्धारित हुई है।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के बचाव में भारतीय नेताओं के बयान-:
1. महात्मा गांधी-:
जिन लोगों को पाकिस्तान से भगाया गया था, उन्हें पता होना चाहिए कि वे पूरे भारत के नागरिक थे ... उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि वे भारत की सेवा करने और उनकी महिमा से जुड़ने के लिए पैदा हुए थे।— (12 जुलाई, 1947 की प्रार्थना सभा में)
2.पट्टाभि सीतारमैया, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-:
संघर्ष और पीड़ा का वह सिलसिला जारी है और बार-बार संकट पैदाकरता है। वर्तमान में अनिवार्य रूप से पूर्व और पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों की रक्षा करने का मुद्दा है। — (कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में जारी बयान, 27 फरवरी, 1950)
3.जवाहर लाल नेहरू, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री-:
मुझे लगता है कि केंद्रीय राहत कोष का उपयोग करना वांछनीय होगा, जिसका उपयोग किसी भी प्रकार की आपातकालीन राहत के लिए किया जा सकता है, लेकिन जिसका उपयोग अब विशेष रूप से पाकिस्तान से शरणार्थियों के राहत और पुनर्वास के लिए किया जाना चाहिए, जो भारत आए हैं। — (नेशनल हेराल्ड, 25 जनवरी, 1948)4.अबुल कलाम आज़ाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-:
शिक्षा मंत्रालय पाकिस्तान से पलायन कर दिल्ली आए सरकारी सेवा में कार्यरत अधिकांश शरणार्थी शिक्षकों को अवसर प्रदान करने की कोशिश कर रहा है। — (9 फरवरी, 1948 को सरदार पटेल को भेजा गया पत्र)5.श्यामा प्रसाद मुकर्जी, भारत के पहले अंतरिम मंत्रिमंडल में पूर्व मंत्री के रूप में-:
मैं एक बात कहना चाहता हूं कि बंगाल की समस्या एक प्रांतीय समस्या नहीं है। यह एक अखिल भारतीय मुद्दे को उठाती है और इसके उचित समाधान पर पूरे देश की आर्थिक और राजनीतिक दोनों तरह की शांति और समृद्धि निर्भर करेगी। — ( उद्योग और आपूर्ति मंत्री पद से इस्तीफे पर संबोधन, 19 अप्रैल, 1950)6.राम मनोहर लोहिया, संसद सदस्य के रूप में, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी-:
लोकसभा में राम मनोहर लोहिया ने कहा, 1947 से 1966 के बीच लगभग 70 लाख हिन्दू पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आये थे।15 साल पहले नेहरू-लियाकत समझौते में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का वादा किया गया था, लेकिन फिर भी पाकिस्तान में उनके खिलाफ अत्याचार हो रहा है।— (मस्तराम कपूर, लोकसभा में लोहिया, 2013 पृष्ठ 505-506)7.इंदिरा गांधी, भारत के प्रधानमंत्री के रूप में, लोकसभा, 24 मई, 1971-:
15 और 16 मई को मैंने असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल का दौरा किया, बांग्लादेश से आए शरणार्थियों की पीड़ा को साझा करने के लिए,उन्हें इस सदन और लोगों यानी भारत की सहानुभूति और समर्थन के लिए और स्वयं पूरी व्यवस्था पर नजर रखने के लिए, जो उनकी देखभाल के लिए उपलब्ध करवाई जा रही है।8.नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत-:
नागरिकता संशोधन विधेयक, कोई उपकार नहीं है। ये अतीत में जो अन्याय हुआ है, उसका प्रायश्चित है। जो मां भारती में श्रद्धा रखते हैं, उन पर ये बड़ा दायित्व है। मुझे उम्मीद है कि ये बिल जल्द संसद से पास होगा और भारत मां में आस्था रखने वालों के सभी हितों की रक्षा करेगा।*भारत के लिए और हमारे देश की करुणा और भाईचारे की भावना के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है। खुश हूं कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 राज्यसभा में पारित हो गया। विधेयक के पक्ष में वोट देने वाले सभी सांसदों का आभार। यह विधेयक बहुत सारे लोगों को वर्षों से चली आ रही उनकी यातना से निजात दिलाएगा।— श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री