माँ चंद्रघटा
मंत्र - पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
हम सभी भक्तजन माता के अलग अलग स्वरूप को नवरात्री मे पूजते है। जिसमे से माता के तीसरे स्वरूप को हम चंद्रघटा के नाम से पूजते है। यह भगवती का तीसरा स्वरूप है जो जीव को वाणी प्रदान करता है। तथा दृश्य प्रगट और ग्रहण करने की क्षमता देती है देवी माँ।
माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। माँ चंद्रघटा के मस्तक पर घंटे के आकर का अर्ध चंद्रमा विराजमान है। इसीलिये इनका नाम चंद्रघटा पड़ा हुआ है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला और और वाहन सिंह है। देवी माता के दस हाथ माने गए है।
देवी माँ कमल, धनुष, बाण, खडग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा धारण किये हुए है। इनके गले मे सफेद पुष्प की माला विराजमान है और सिर पर रतन जडित मुकुट सुशोभित है।
माता चंद्रघटा युध्य की मुंद्रा मे विराजमान है, और तंत्र साधना मे मणिपुर की चक्र को नियंत्रित करती है।
ऐसा माना जाता की माता के इस स्वरूप को पूजन करने से मन मे आपार स्थिर हो जाता है सकून की प्राप्ति होती हैं। माता के पूजन करने से लोक परलोक मे भी परम कल्याण की प्राप्ति होती है। माँ चंद्रघटा की पूजन मे दूध का प्रयोग उत्तम माना गया है। माता का यह स्वरूप मन को शांति देने वाला है।
परम शांतिदायक व कल्याणकारी एवं माँ दुर्गा जी की तृतीय स्वरूपा माँ चन्द्रघण्टाकी महापूजा की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ! माँ चंद्रघंटा जी सभी भक्तों को वांछित फल प्रदान करें, यही प्रार्थना है।