पहला मिलिट्री फार्म इलाहाबाद में 1 फरवरी 1889 को खोला गया था. इसके बाद दिल्ली, जबलपुर, रानीखेत, जम्मू, श्रीनगर, लेह, करगिल, झांसी, गुवाहटी, सिकंदराबाद, लखनऊ, मेरठ, कानपुर, महू, दिमापुर, पठानकोट, ग्वालियर, जोरहट, पानागढ़ सहित कुल 130 जगहों पर इस तरह के मिलिट्री फार्म्स खोले गए थे.
रक्षा क्षेत्र में सुधार के तहत भारतीय सेना ने देशभर में फैले अपने 130
मिलिट्री-फार्म्स को हमेशा के लिए बंद कर दिया है. वर्ष 1889 में ब्रिटिश
काल में इन मिलिट्री फार्म्स को सैनिकों को ताजा दूध सप्लाई करने के लिए
शुरू किया गया था. बुधवार को राजधानी दिल्ली के कैंट में मिलिट्री-फार्म्स
रिकॉर्ड्स सेंटर में फ्लैग-सेरेमनी के दौरान मिलिट्री फार्म्स को ‘डिसबैंड’
करने का कार्यक्रम आयोजन किया गया.
सेना को लीन एंड थिन बनाने की दिशा में मिलिट्री फार्म्स को बंद किया गया है. यहां तैनात सभी सैन्य अधिकारी और सिविल डिफेंस कर्मचारियों को सेना की दूसरी रेजीमेंट्स और यूनिट्स में तैनात कर दिया गया है. एक अनुमान के मुताबिक, हर साल इन फार्म्स पर करीब 300 करोड़ रूपये का खर्च आता था. साथ ही सीमावर्ती इलाकों में तैनात सैनिकों को पैकेड मिल्क की सप्लाई ज्यादा होती है. इसीलिए इन फार्म्स को बंद करने का फैसला लिया गया है.
सेना के रिकॉर्ड्स के मुताबिक, आजादी के दौरान इन फार्म्स में करीब 30 हजार गाए और दूसरे मवेशी थे. एक अनुमान के मुताबिक, हर साल ये मिलिट्री फार्म्स करीब 3.5 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन करते थे. 1971 की जंग हो या फिर करगिल युद्ध, उस दौरान भी फ्रंटलाइन पर तैनात सैनिकों को दूध इन मिलिट्री-फार्म्स से ही सप्लाई किया गया था. 1990 में लेह-लद्दाख में भी मिलिट्री फार्म स्थापित किया गया था।
मिलिट्री फार्म्स की आवश्यकता थी क्योंकि शहरी क्षेत्रों से दूर छावनी स्थित थी। हालांकि, शहरी विस्तार के साथ, कस्बों और शहरों के भीतर छावनियां आ गई हैं और खुले बाजार से दूध की खरीद तेजी से हो रही है।
अब इन मिलिट्री फार्म्स के दूध और दूसरे मिल्क-प्रोड़ेक्ट्स की सप्लाई सेना की कुल सप्लाई का मात्र 14 प्रतिशत रह गया था. इसके अलावा, सेना अब सिर्फ कॉम्बेट रोल पर ही अपना ध्यान ज्यादा केंद्रित करना चाहती है. यही वजह है कि सेना ने इन मिलिट्री फार्म्स को बंद करने का निर्णय लिया है.
सेना के मुताबिक, एक स्वर्णिम इतिहास के बाद इन मिलिट्री-फार्म्स को बंद करने का फैसला लिया गया है. यहां तक की कृषि मंत्रालय के साथ मिलकर एक बार इन मिलिट्री फार्म्स ने प्रोजेक्ट-फ्रेसिवल के तहत मवेशियों का दुनिया का सबसे बड़ा क्रॉस-ब्रीडिंग प्रोग्राम चलाया था. बायो-फ्यूल के लिए भी इन फार्म्स ने डीआरडीओ के साथ करार किया था. हर साल ये मिलिट्री फार्म्स करीब 25 हजार मैट्रिक टन चारे का उत्पादन करते थे.
2012 में, क्वार्टर मास्टर जनरल ब्रांच ने और दिसंबर 2016 में लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकटकर (retd) समिति ने मिलिट्री फार्म को बंद करने की सिफारिश की थी। जिसके बाद कैबिनेट से इसी स्वीकृति मिली। मिलिट्री फार्म के बंद होने के बाद इस जमीन को सैनिकों के रहने और अन्य व्यवस्थाओं के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने अगस्त 2017 में कई सुधारों की घोषमा की थी जिनमें सैन्य फार्म को बंद करना भी शामिल था।
राज्य सरकारों को सौंपी जाएंगी गायें
मिलिट्री फार्म के मवेशियों को बेहद ही कम कीमतों पर राज्य सरकारों को दिया गया। इन मिलिट्री फार्म के बंद होने से जो सिविलियन रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करते हैं, उन्हें दूसरे विभागों में तबादला कर दिया गया है।
Is Puri Jankari ko dene ke liye aap logon ko bahut sara dhanyvad AVN shubhkamnaen aur aur Asha Karte Hain Ki aise hi aap Hamen nirantar shubhkamnaen aur Samachar dete Rahenge
ReplyDeleteधन्यवाद Anu :)
DeleteDrafting skill of author is appreciable
ReplyDeleteThanks Badri :)
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