रंगो के त्यौहार होली की शुभकामनाएं
होली के त्यौहार मानो प्राकृति के रंगो से ही प्ररित है । फाल्गुन माह में प्राकृति भी अपने ही अंदाज़ से होली खेल रही होती है । फाल्गुन के महीने में इंसान ही नहीं बल्कि प्रकृति भी अपने रंग-बिरंगे रूप में नजर आती है। इन दिनों पेड़-पौधों पर रंग-बिरंगे फूलों की बहार नजर आ रही है।
पतझड़ में झड़े पाते मानो धारा को भूरे रंग में रंग रहे हो । पतझड़ के बाद , अब पेड़ो में नव पल्लव (नया एवं कोमल पत्ता) आ जाते है जैसे प्राकृति सुनहरा हरा रंग बिखे कर होली खेल रही हो । वही आम के पेड़ो में बौर से लादे रहते है , और एक मनोहर दृश्य बनाते है । महुए का फूल (महुआ) जो धारा पर बिखरे मोती के समान प्रतीत होता है ।
फ्लेम आफ फारेस्ट ( Flame of Forest ) यानी ‘वन ज्योति’ - लाल केसरिया रंग के टेसू के फूल भी वातावरण को सुशोभित करते हैै । टेसू को पलास, परसा, ढाक और केसू आदि नाम से जाना जाता है। तोता की चोंच के समान फूल का आकार होने के कारण इसे किंशुक नाम भी दिया गया है। टेसू का पेड़ से गिरते फूल ऐसे लगते हैं मानो पेड़ खुद अंजुलियों में भरकर रक्त पूष्प भूमि पर न्योछावर कर रहे हैं। नीरस मन भी पुलकित हो उठता है। पलाश का फूल उत्तर प्रदेश सरकार का राज्य पुष्प है। इसको भारतीय डाक विभाग द्वारा डाक टिकट पर भी स्थन दिया गया है।
ये प्रकृति के रंग एक नया उत्साह बिखेर रहे है । सभी जीव जंतुओं के जीवन में एक नव ऊर्जा का प्रवाह कर रहे है ।
आधी सदी पूर्व तक होली कुदरत के रंगों यानी टेसू, केसर, मजीठ आदि के रंगों से खेली जाती थी। लेकिन बाजारीकरण या भूमंडलीकरण का असर कहें कि कुदरत के रंग न जाने कहां खो गए और हम अपनी संस्कृति-सभ्यता को लगभग भुला बैठे।
हम सब मिल कर प्रयास करे की वृक्षों का संरक्षण करे , अपने घर के आस पास विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे लगाए और वातावरण को सुशोभित करने वाले वृक्षों से साफ हवा , गर्मी में छाया , मृदा संरक्षण जैसे अनेक लाभ ले और दुनिया को रंग बिरंगा बनाए रखे ।
मनुष्य की होली के बाद अब प्रकृति की होली का आनंद उठाये ।
Nice...
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