सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी। बिनती सुनहु सदासिव मोरी।।
आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी।।
रामचरित मानस के अयोध्याकांड में तुलसीदास ने ये चौपाइयां उस प्रसंग में
लिखी हैं जिसमें राम के राज्याभिषेक के बजाय वन जाने की बात से दुखी राजा
दशरथ पुत्र राम को देखकर भगवान शिव की स्तुति करते हैं।
- भावार्थ :-
राजा दशरथजी महादेवजी (महेसहि ) का स्मरण (सुमिरि ) करके उनसे निहोरा (कृतज्ञता , प्रार्थना करना) करते हुए कहते हैं- हे सदाशिव! आप मेरी विनती सुनिए। आप आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले) और अवढरदानी (मुँहमाँगा दे डालने वाले) हैं। अतः मुझे अपना दीन सेवक जानकर मेरे दुःख को दूर कीजिए॥॥