भूल गया है क्यों इंसान!
सबकी है मिट्टी की काया,
सब पर नभ की निर्मम छाया,
यहाँ नहीं कोई आया है ले विशेष वरदान।
भूल गया है क्यों इंसान!
धरनी ने मानव उपजाये,
मानव ने ही देश बनाये,
बहु देशों में बसी हुई है एक धरा-संतान।
भूल गया है क्यों इंसान!
देश अलग हैं, देश अलग हों,
वेश अलग हैं, वेश अलग हों,
रंग-रूप निःशेष अलग हों,
मानव का मानव से लेकिन अलग न अंतर-प्राण।
भूल गया है क्यों इंसान!
-- हरिवंशराय बच्चन