नागवासुकी मंदिर के किनारे से गंगा जी निकली हुई है और इसके घाट को मुंबई के मरीन ड्राइव की तरह बनाया गया है ।
इसे प्रयागराज का मरीन ड्राइव भी कहा जाता है जो की नागवासुकी मंदिर के ठीक सामने है ।
यहां नागपंचमी के दिन कई श्रद्धालु नाग देवता को दूध चढ़ाने जाते है नागपंचमी के दिन काफी मात्रा में श्रद्धालु की संख्या उमड़ती है
नागवासुकि देव जी का पूजा किया जाता है और उनकी पत्थर की मूर्ति मंदिर के केंद्र में स्थित है। नागवासुकि को शेषराज, सर्पनाथ एवं अनंत और सर्वाध्यक्ष भी कहा गया है। इस मंदिर की महिमा का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते है । कि हर श्रद्धालु और तीर्थयात्री की प्रयागराज यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती है । जब तक कि वह भगवान नागवासुकी के दर्शन नहीं कर लेता। और यहा कुंभ, अर्ध कुंभ, माघ मेला और नागपंचमी के दिन लाखों तीर्थयात्री मंदिर में आते हैं। इस मंदिर का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि भोगावती मंदिर नागवासुकी द्वारा बसा हुआ है। नागवासुकी मंदिर को पूर्व की ओर गंगा के पश्चिम किनारे पर भोगावती तीर्थ माना जाता है। जब बरसात के दिनों में गंगा जी में बाढ़ जब आती है, तो उसका पानी नागवासुकी मंदिर की सीढ़ियों तक पहुंच जाता है। इसके बाद भक्त भोगावती मंदिर में स्नान करते हैं। श्रावण मास में शांति अर्थात शांति का अनुष्ठान किया जाता है। नागवासुकी मंदिर में रुद्राभिषेक, महाभिषेक और काल सर्पदोष लोग कराते है।
कैसे प्रयाग आये नाग वासुकी देव जी
पद्म पुराण के पाताल खंड व श्रीमद्भागवत में नाग वासुकी व इस मंदिर का विस्तृत उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन में देवताओं व असुरों ने नागवासुकी को सुमेरु पर्वत में लपेटकर उनका प्रयोग रस्सा के तौर पर किया गया था। मंथन के चलते नागवासुकी के शरीर में काफी रगड़ हुई थी और जब मंथन समाप्त हुआ तो उनके शरीर में जलन होने लगी थी। और उस जलन को दूर करने के लिए वासुकी जी मंद्राचल पर्वत चले गए, लेकिन उनके शरीर की जलन खत्म नहीं हुई। तब नाग वासुकी ने भगवान विष्णु से अपनी पीड़ा कही और जलन खत्म करने का उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने नागवासुकी को बताया कि वह प्रयाग चले जाएं वहां सरस्वती नदी का अमृत जल का पान करें और वही विश्राम करें, जिससे उनकी सारी पीड़ा समाप्त जाएगी।
इस मंदिर के बारे में मशहूर है कि जब औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था तो वह खुद बहुचर्चित नागवासुकि मंदिर को तोड़ने के लिए भी आया था। लेकिन यहां उसके साथ ऐसी घटना घटी। जिससे वो मंदिर से भाग गया , उसने जैसे ही उसने मूर्ति पर तलवार चलाई, तलवार मूर्ति में फंस गई और अचानक भगवान नागवासुकि का दिव्य रूप में प्रकट हो गए । उनका विकराल रूप देखकर औरंगजेब कांप उठा और भय से बेहोश हो गया। मंदिर की कई पौराणिक मान्यताएं भी हैं। इस मंदिर के बारे में ऐसी पौराणिक मान्यता है कि यहां आकर पूजा करने से काल सर्प दोष हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। किंवदंती है कि उस समय तत्कालीन मराठा राजा को कुष्ठ रोग हो गया था। इसलिए राज पंडित ने इस बात पर सहमति जताई थी कि यदि राजा को बीमारी से मुक्ति मिल जाएगी तो वह मंदिर का जीर्णोद्धार कराएंगे। राजा को खतरनाक बीमारी से मुक्ति मिल गई। कृतज्ञ राज पंडित ने मंदिर के साथ ही पक्का घाट भी बनवाया।
मंदिर का स्वरूप
मंदिर के गर्भगृह में नाग-नागिन की स्पर्शधारी प्रतिमा है, जिसे नागवासुकी के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि ब्रह्मा जी के मानसपुत्रों ने नागवासुकी जी की मूर्ति के रूप में यहां स्थापित किया हैं। यहां मौजूद पत्थर 10 वीं सदी से भी ज्यादा प्राचीन बताये जाते हैं। मंदिर परिसर मे गणेश जी व पार्वती जी, भीष्म पितामह की शर-शय्या पर लेट हुई प्रतिमा व भगवान शिव की भी मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर का सैकड़ों वर्ष पहले नागपुर के राजा श्रीधर भोसले ने जीर्णोद्धार कराया था। जबकि 2001 में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने मंदिर की फर्श व दीवारों को ठीक कराया था।